टोक्यो: जापान में दशकों से ऐसा कामकाजी माहौल रहा है जहां कर्मचारी ऑफिस से जल्दी निकलने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। वहां के लोग इतना अधिक काम करते हैं कि कई बार जान भी गंवा बैठते हैं। इस प्रवृत्ति को जापानी भाषा में “करोशी” कहा जाता है — जिसका अर्थ है "अधिक काम के कारण मृत्यु"।
यह शब्द कोई रूपक नहीं, बल्कि जापानी समाज की एक गहरी सच्चाई को बयां करता है। 'करोशी' सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि जापान की लंबी वर्किंग ऑवर्स और मानसिक तनाव से जुड़ी सामाजिक बीमारी का नाम है, जो वर्षों से देश को जकड़े हुए है।
हाल के वर्षों में, जापान के युवा वर्ग ने इस 'टॉक्सिक' कल्चर के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर एक जापानी कर्मचारी के 18 घंटे के कार्यदिवस की वायरल वीडियो ने इंटरनेट पर खलबली मचा दी। लोगों ने इसे "आत्मा को निगलने वाला जीवन" करार दिया और कहा कि "इंसान को इस तरह नहीं जीना चाहिए"।
युवाओं की इस नई सोच ने परंपरागत जापानी वर्क एथिक को चुनौती दी है। अब वे अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी, मानसिक स्वास्थ्य और संतुलित जीवनशैली को प्राथमिकता देने लगे हैं।
जापान में काम के दबाव से जुड़ी आत्महत्याओं और स्वास्थ्य संबंधी मौतों ने देश की जनसंख्या दर को भी प्रभावित किया है। कम विवाह दर, गिरता जन्मदर और कम होती उत्पादकता — सभी समस्याओं की जड़ इस अतिशय कार्य संस्कृति में मानी जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और देश के अंदर से उठती आलोचना के चलते सरकार ने कुछ सुधारात्मक कदम उठाए हैं। कार्यदिवस कम करने, छुट्टियों को अनिवार्य बनाने और वर्क-फ्रॉम-होम को बढ़ावा देने जैसे प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन आलोचकों का मानना है कि ये बदलाव अभी भी नाकाफी हैं।
समाजशास्त्रियों का कहना है कि जापान में बदलाव तभी स्थायी होगा जब कंपनी कल्चर के साथ-साथ सामाजिक मानसिकता भी बदले। "वर्क इज लाइफ" के स्थान पर "वर्क-लाइफ बैलेंस" की अवधारणा को अपनाने की आवश्यकता है।
इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे युवा न सिर्फ अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक नया रास्ता बनाना चाहते हैं — एक ऐसा रास्ता जहां काम इंसान को खत्म न करे, बल्कि उसे बेहतर बनाए।
निष्कर्ष:
जापान में चल रही यह युवा क्रांति एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन की ओर इशारा करती है। जहां एक ओर 'करोशी' का डर अब भी बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर एक उम्मीद की किरण भी दिख रही है — कि आने वाले समय में जापान के कामकाजी लोग काम के बोझ में नहीं, बल्कि जीवन की संतुलित लय में जी पाएंगे।